होती है आँसुओं की ये बरसात क्या करें
होती है आँसुओं की ये बरसात क्या करें
भीगे हैं बात-बात पे जज़्बात क्या करें
जब खुद से ही हुई न मुलाकात क्या करें
रोये नहीं तो और ये जज्बात क्या करें
हम दिल से उनको भूलना तो चाहते मगर
उनके ही आते रहते खयालात क्या करें
गम को गले लगाना भी हँसकर हमें पड़ा
किस्मत से ही मिली है ये सौगात क्या करें
हम जानते हैं हाथ में इसके भी कुछ नहीं
फिर ज़िन्दगी से अपनी सवालात क्या करें
छोटी से छोटी बात पे लड़ते ही हम रहे
मिलते नहीं जब अपने खयालात क्या करें
मायूस हो न जाना यही सोच-सोच कर
हो पाई ही न अच्छी शुरुआत क्या करें
वैसे तो ‘अर्चना’ रहे बस मिलने की तड़प
पर मिल के सोचते हैं कि हम बात क्या करें
02-12-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद