होती शाम ….
होती एक शाम सुहानी सी ,मस्तानी सी, दीवानी सी
बन जाती जब तुम महबूबा ,न रहती आज सखानी सी
पहन के आती सूट वही ,जो दिया था मैंने तोहफे मे
खुले बाल और झुकी नजर ,लगती हीरोइन ईरानी सी
लगा के सुरमा थोड़ा सा ,थोड़ी सी लबों पे लाली भी
मन्द मन्द मुस्काती जब , देती व्रण गूढ़ रुखानी सी
फ़िर ताकता मैं अलबेली को , नागिन सी काली जुल्फों को
और गोद में उसकी सर रखता ,चाहत इतनी रूमानी सी
न ओझल होती पल भर तुम ,रखती ख्याल ऐसे मेरा
तब गाफिल बनके रहता मैं , हरकत करता बचकानी सी
क्यों बातें हम करते कुछ भी ,आँखों आँखों में चलता सब
कुछ भोला भाला मैं बनता ,कुछ रहती तुम अनजानी सी
ये देख कर जग आहें भरता , किरदार में जो तुम होती ग़र
कितनी प्यारी जोड़ी लगती ,बन जाती ये हीर कहानी सी
© सत्येंद्र