***होती थी पहले भी पढ़ाई***कविता
होती थी पहले भी पढ़ाई, पढ़ते थे आश्रम में भाई।
हो जाती थी घर से विदाई, गुरु की आज्ञा शीश चढ़ाई।।
बदलते रहे युग ,नवयुग ने ली है अब अंगड़ाई।
छूटी परंपराएं सारी, शिक्षा आधुनिक जो आई।।
कहां गुरु का मान रहा है, शिष्य अपनी ही ठान रहा है।
आन बान और शान शिष्य तो, पोशाको को ही मान रहा है।।
ध्यान लगाना छूटा अब तो ,रिश्ता धागों का टूटा अब तो।
हर रिश्तो में गांठ लग रही, न कोई पहचान रहा है।।
ऐसी कैसी करी पढ़ाई ,सास बहू में होती लड़ाई।
मात-पिता की सुने न कोई ,लड़ रहे हैं भाई भाई।।
परिवार संयुक्त बिखर गए हैं, एक दूजे को अखर रहे हैं।
कैसे आधुनिक हैं हम अनुनय, मेरे तो समझ न आई।।
राजेश व्यास अनुनय
१८/०३/२०२१/गुरुवार