होगी रहमत कभी…..(ग़ज़ल)
रदीफ-आते
काफिया-रहो
ग़ज़ल
होगी रहमत कभी तो अर्जियां लगातें रहो।
रात-दिन में खुशी-ग़म में तवज्ज़ो पाते रहो।
बग़ैर उसकी रज़ा पत्ता भी हिल सकता नही।
पेशानी घिस-घिस के उसको तुम मनाते रहो।
करेगा जब कबूल वो अपनी इबादत को।
तब तलक मन को उसके कदमों में रमाते रहो।
होगा सब आहिस्ता इतनी भी जल्दी कैसी।
लेके इकतारा-सुधा-गीत उसके गातें रहो।
वैसे तो काफी है बसर को इक तसव्वुर उसका।
बाद इसके हर शख़्स खुदा हर जगह जन्नत पाते रहो।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड़
१२/४/२०१७