होके रहेगा इंक़लाब
कह दो कि वे तैयार रहें
आख़िरी अंज़ाम के लिए
तिनके हैं सब मामूली-से
वक़्त के तूफ़ान के लिए
(१)
यहां बह रहे जो आजकल
आंखों से हमारे अवाम की
ये आंसू नहीं, चिंगारी हैं
ज़ुल्मत के निज़ाम के लिए…
(२)
मेरी शायरी को इस क़दर
हल्के में लेना ठीक नहीं
यह जंग का ऐलान है
मग़रूर हुक़्काम के लिए…
(३)
आसमानी किताबें तो
फरिश्तों के लिए होती हैं
मैं ख़ोज रहा हूं ज़मीनी
किताबें इंसान के लिए…
(४)
उनकी करतूतें देखो
और उनकी बकवास सुनो
वे जाहिल बने हुए हैं बस
किसी बियाबान के लिए…
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Shekhar Chandra Mitra
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