हों बदनाम गर वो उचाई न दे।
गज़ल
122…..122….122…..12
हों बदनाम गर, वो उचाई न दे। ,
खुदाया कभी जग हँसाई न दे।
मुझे प्यार दे दे तु माँ बाप का,
तु रख अपनी मुझको कमाई न दे।
यही इल्तिज़ा साथ हरदम रहे,
खुदा मुझको उनसे जुदाई न दे।
तेरे गेशुओं में मैं उलझा रहूँ,
कि जुल्फों से तेरी रिहाई न दे।
तु रख अपनी दौलत व शुहरत सभी।
असहनीय ये बेहयाई न दे।
दिसंबर की सर्दी हो कैसा लगे,
अगर तुमको कोई रजाई न दे।
जिसे पढ़ के बच्चे भुला दें हमें,
तो बच्चों को ऐसी पढाई न दे।
मैं प्रेमी हूँ देता यही बस दुआ,
रहे खुश सदा प्रभु रुलाई न दे।
……✍️ प्रेमी