है हुस्न का सौदागर…
नज़रों में बसाएगा नज़रों से गिरा देगा
यूँ टूट के मत चाहो इक रोज रुला देगा
उससे न मिलो अपनी वो मस्त अदाओं से
जिसकी न दवाई है वह रोग लगा देगा
वादे से मुकर जाना फ़ितरत है ज़माने की
जब रीत यही है तो क्या वो न दगा देगा
तुम इश्क़ की नाकामी कहना न कभी जग से
सब ज़ख़्म कुरेदेंगे कोई न दवा देगा
‘आकाश’ नहीं उसकी जुल्फों में उलझना तुम
है हुस्न का सौदागर कंगाल बना देगा
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 10/10/2023
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मापनी- 221 1222 221 1222