है यही कड़वा सच
तरक्की की बहुत हमने, हो गए मकान बड़े
हर तरफ दिखते है आलीशान भवन बड़े
लेकिन रहने वाले उन घरों में हो गए कम
घर में भी है अकेले, हो गए घर इतने बड़े।।
खुल रहे उच्च शिक्षा संस्थान कई
ले रहे छात्र बड़ी बड़ी डिग्रियां जहां
लेकिन संस्कारों की शिक्षा हो गई बंद
जाए कहां सीखेंगे वो, संस्कार जहां।।
बेहतर हो गई स्वास्थ्य सेवाएं
ढूंढ लिए हमने इलाज कई
लेकिन बढ़ रही बीमारियां भी
जो पहले थी कहीं दिखती नहीं।।
पहुंच गए हम अंतरिक्ष में
मंगल पर पांव रख दिए हमने
पड़ोसी को हम जानते नहीं
ये कैसी उड़ान भर दी है हमने।।
हो गए हम समृद्ध पहले से
सुख सुविधाएं मिल रही तमाम
न जाने आज का मानव फिर
क्यों भूल गया है सुकून का नाम।।
पहनते है लोग महंगी घड़ियां
लेकिन उनके पास समय है नहीं
बातें बहुत है दिल में उनके
लेकिन सुनने वाला कोई है नहीं।।
जहां भी देखो, हर जगह
ज्ञान की गंगा बह रही है
कोई जगह नहीं है मेरी इसमें
ये भावनाएं कह रही है।।
रिश्ते बनते आजकल देर नहीं लगती
लेकिन उससे भी तेज़ी से टूटते है रिश्ते
बस कहानियों में ही मिलते है पढ़ने को
आजकल सच्चा प्यार और सच्चे रिश्ते।।