है मेरु रज्जू टेढ़ी बेजान हड्डियां हैं।
गज़ल
काफिया -आं की बंदिश
रदीफ़- हैं
मफ़ऊलु फाइलातुन मफ़ऊलु फाइलातुन
221…….2122……221….2122
है मेरु रज्जू टेढ़ी बेजान हड्डियां हैं।
आता नहीं यकीं ये इंसानी बस्तियां हैं।
तूफान के थपेड़ो से जार जार होकर,
लगता है आके साहिल पे डूबी कश्तियां हैं।
दुनियाँ की नेमतें भी जिनको हैं दी खुदा ने,
खाते वो मुफलिसों के हिस्से की रोटियां हैं।
उन नामाकूल मर्दों को भेजता हूं लानत,
कसते हैं आते जाते नारी पे फब्तियां हैं।
रखिए सदा जवानों को शीश पर बिठाकर,
खाते जो देश खातिर सीने पे गोलियां हैं।
बेटी के जन्मदिन पर खुशियां मनाओ यारों,
अब आसमां जमीं पर हर ओर बेटियां हैं।
बनकर वतन के प्रेमी हम देश प्रेम कर लें,
बस प्रेम में हमारे जीवन की मस्तियां है।
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी