है बाकी मिलना लक्ष्य अभी तो नींद तुम्हे फिर आई क्यों ? दो कद
है बाकी मिलना लक्ष्य अभी तो नींद तुम्हे फिर आई क्यों ? दो कदम भी पाँव हैं बढ़े नहीं, तो रास्ते में अंगड़ाई क्यों ? क्या भूल गये, तुम क्या करना है, जो इतने में रुक जाते हो ? या भूल गये उस ममता को जो अपना शीश झुकाते हो ?
अभी समर क्रान्ति भी हुई नहीं, तुमने अभी से माथा टेक दिया शत्रु का वक्षस्थल विन भेदे, क्यों युद्ध में भाला फेंक दिया ? उस गुरुवर की वाणी को तुमने, मिध्या के रेत में झोंक दिया या भूल गये उस मौकी पीड़ा, जो नौ माह का अपना कोख दिया …
उठो पार्थ, तुम कर सकते हो, साहस भर भर के वार करो, एक वार में सौ टुकड़े हो ऐसा घातक शस्त्र प्रहार करो, प्रत्यंचा खींचो और वाण चढ़ाओ तुम शत्रु का संहार करो पर रशीश नहीं दस शीश कटे, तुम ऐसा विकट प्रहार करो …..
उठो पार्थ तुम कर सकते हो, साहस भर भरके वार करो …
यदि बीरगति को प्राप्त हुए तो विजयवीर कहलाओगे और युध्द देखकर भाग चले तो कायर का जीवन पाओगे… अब निर्णय है तुम्हारे हाथो में, तुम चाहे जो स्वीकार करो,
उठो पार्थ तुम कर सकते हो, पूरी क्षमता से वार करो !!