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8 Dec 2016 · 1 min read

है दरमियाँ जो आज वो परदा हटाकर देख लेते हैं

है दरमियाँ जो आज वो परदा हटाकर देख लेते हैं
इन फूलों की तरहा हम भी मुस्कुराकर देख लेते हैं

डोर हाथ में है हवाएँ साथ में हैं तो डरना कैसा
खुले इन आसमानों में पतंग उड़ाकर देख लेते हैं

रंग हैं बिखरे-बिखरे मेरे कुछ ख़्वाब हैं खोये-खोये
तेरी उल्फ़त के साये में सबको बुलाकर देख लेते हैं

हमसे बयां ना हो सका शायद तुम वो पहलू देख सको
कोई दिलरुबा सी आओ ग़ज़ल सुनाकर देख लेते हैं

चैन कुछ सुकून कुछ राहत की तलब है दिल-ए-बेचैन को
कोई देर को जमाने से दूर जाकर देख लेते हैं

थके उठते हैं क्यूँ जो उठते हैं सारी रात के सोए
तेरे नाम की जानम इक रात जगाकर देख लेते हैं

हमारी सुने और समझे भी हमें है ज़ुस्तज़ू उसकी’सरु’
इन बेगानों से किसी को अपना बनाकर देख लेते हैं

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