है दरमियाँ जो आज वो परदा हटाकर देख लेते हैं
है दरमियाँ जो आज वो परदा हटाकर देख लेते हैं
इन फूलों की तरहा हम भी मुस्कुराकर देख लेते हैं
डोर हाथ में है हवाएँ साथ में हैं तो डरना कैसा
खुले इन आसमानों में पतंग उड़ाकर देख लेते हैं
रंग हैं बिखरे-बिखरे मेरे कुछ ख़्वाब हैं खोये-खोये
तेरी उल्फ़त के साये में सबको बुलाकर देख लेते हैं
हमसे बयां ना हो सका शायद तुम वो पहलू देख सको
कोई दिलरुबा सी आओ ग़ज़ल सुनाकर देख लेते हैं
चैन कुछ सुकून कुछ राहत की तलब है दिल-ए-बेचैन को
कोई देर को जमाने से दूर जाकर देख लेते हैं
थके उठते हैं क्यूँ जो उठते हैं सारी रात के सोए
तेरे नाम की जानम इक रात जगाकर देख लेते हैं
हमारी सुने और समझे भी हमें है ज़ुस्तज़ू उसकी’सरु’
इन बेगानों से किसी को अपना बनाकर देख लेते हैं