है खोफ मंजर फैला हुआ
है खोफ मंजर फैला हुआ
डर का साया बिखरा हुआ
सूनी पड़ी सड़कें और गालियां
मातम ये कैसा छाया हुआ
जीने की ये क्या रीत हुई
नकाब ओढ़े चेहरा हुआ
रहने लगे है अब दूर-दूर
किनारो की तरह दायरा हुआ
बेबस हुआ है इंसान आज
पूरा गैहान हारा हुआ
जहन्नूम की है ये आफत या
खूद से ही कोई गिला हुआ
हौकर कूदरत के रूबरू ‘मनी’
हैसियत का अन्दाजा हुआ
शिवम राव मणि