है कौन सबसे विशाल?
बारंबार मन में उठता एक सवाल,
है कौन सबसे विशाल?
पूछा हमने शैल शिखर से,
क्या है तू सबसे विशाल?
कहा पर्वत हाँ दिखता हूँ विशाल,
है पर इसका किस्सा कमाल,
है उस धरणी का सहयोग बड़ा,
जो है मृदुल वात्सल्य धरा,
मुझे शिखर बनाने में,
सबसे ऊपर दिखलाने में,
अपनी कोमलता का त्याग कर,
स्व विजय भाव को हार कर,
बीते उनके असंख्य काल,
फिर कहूँ कैसे मैं विशाल ।
हमने पूछा जा फिर सागर से,
क्या है तू सबसे विशाल?
हाँ दिखता अवश्य विशाल,
संकुचित चित में है एक मलाल,
है उन नदियों का सहयोग बड़ा,
सच पूछो नतमस्तक हूँ मैं खड़ा,
जलधि का मीठा पानी,
जीवन पाए हर एक प्राणी
मिल मुझमें नदियों की धारा,
हुआ अमृत जल भी खारा,
हँसते कर से दिया ताल,
फिर कहूँ कैसे मैं विशाल ?
हे द्रुम! प्राणवायु के दाता,
क्या है तू सबसे विशाल?
हाँ दिखती शाखा मेरी विशाल,
पर स्मरणीय है वह सत्य हाल,
भले ह्रस्व लता मेरी छाया में पलते,
प्रलय बाढ में मुझसे पहले लड़ते,
जब जब डोले पावन धरणी,
जकड़ लड़े बन जीवनसंगिनी,
है वह मेरा, मैं उनका आश्रित,
तुही बता कौन है पराश्रित,
मेरी रक्षार्थ बुना अपना जाल,
फिर कहूँ कैसे मैं विशाल।
फिर मानव क्यों ?- – – क्रमशः
उमा झा