है कौन!जो मेरे साथ खड़ा है?
एक बाढ़ की विपदा क्या आई,
पुरखों की संपत्ति मैंने गंवाई,
जीवन जीने की जो सौगात मिली थी,
मेरी गृहस्थी जिससे चली थी,
अचानक बाढ़ का जलजला क्या आया,
मुझसे छीन गयी, अर्थ तंत्र की मेरी माया!
(आर्थिक श्रोत)!
पल भर में ढह गई इमारत,
लिख गई मेरी किस्मत की इबारत,
आजिविका का श्रोत बह गया,
मैं खाली हाथ रह गया हूं,
बहुत कुछ मैं इसमें खो चुका हूं,
अब निढाल सा हो चुका हूं!
शासन आया प्रशासन आया,
राहत का ऐलान कराया,
मेरा आसियाना व्यवसायिक कहलाया,
मैंने राहत का हक गंवाया,
मैं स्वयं को छला हुआ पा रहा हूं,
मैं क्यों कर इससे वंचित किया जा रहा हूं!
क्षति सिर्फ मुझ तक सीमित नहीं है,
और भी इसके शिकार हुए हैं,
पर उनको थोड़ी सी तो राहत मिली है,
अपनों से भी कुछ मदद मिली है,
मुझको तो ये भी हासिल नहीं है,
अपनों की भी कोई दरिया दिली नहीं है,
मैं आहत हो ताक रहा हूं,
मैं अकेला आ पड़ा हूं!
है समस्या विकट बड़ी भारी,
फिर से खड़े होने की जिम्मेदारी,
पर साथ भी तो नहीं मिल पा रहा है,
मदद का हाथ भी वह बढ़ा रहा है,
जो नहीं निकट का,ना है पराया,
ऐसा कोई हाथ नजर नहीं आया,
जिसने हो भरोसा जगाया,
हर किसी की राहत नहीं जायज,
इसी लिए मैं व्याकुल हुआ हूं,
टुटे हुए घर आंगन को कैसे संवारु,
मैं स्वयं को असहाय पा रहा हूं,
इसी उधेड़बुन में जिया जा रहा हूं!
यह विपदा का दौर बड़ा है,
मेरे लिए यह दौर बुरा है,
है कौन जो मेरे साथ खड़ा है!!
यह विपदा का दौर बड़ा है,
यह विपदा का दौर बड़ा है!!