है आज गर जुदाई मिलना कभी तो होगा।
गज़ल
221……2122……221…..2122
पतझड़ चमन में तो क्या,खिलना कभी तो होगा।
है आज गर जुदाई, मिलना कभी तो होगा।
तुम दीप ज्वाल सी हो, मै प्रेम का पतंंगा,
तुझसे मिलूंगा, मिलकर जलना कभी तो होगा।
हिमखंड हो चुका मै, ज्वालामुखी सी तुम हो,
गर्मी से तेरी मुझको, गलना कभी तो होगा।
ये चाँद आसमां पर, अधिकार है सभी का,
अपना बताते उनसे, कहना कभी तो होगा।
हम ख्वाब देखते हैं, जिस चाँद के सुहाने,
उस चाँद पे ही चलकर, रहना कभी तो होगा।
मर मर के जी रहे हैं, ये गर्दिशों का आलम,
उम्मीद है कि हंसकर, जीना कभी तो होगा।
ये बात सच है प्रेमी, हो प्यार में दिवाना,
गलियों में बन के मीरा, फिरना कभी तो होगा।
……✍️ प्रेमी