है आँखों में रक्खा तुम्हारी नमी को।
ग़ज़ल
122…..122…..122…..122
है आँखों में रक्खा तुम्हारी नमी को।
सजाया लबों पर तुम्हारी हँसी को।
तुम्हारे सभी गम तो मैंने लिए है,
मिले साथ मेरा खिली चाँदनी को।
खुदी के ही खातिर सभी तो हैं जिंदा,
न गैरों की समझे कोई बेबसी को।
अँधेरों ने इतना सताया है हमको,
तरसते हैं हम तेरी रोशनी को।
न है रोजी रोटी न है कामधंधा,
बता क्या करें हम तेरी दोस्ती को।
लगी भूख यारो तो मय की शरण लो,
खुली छूट दी हैं तभी मयकशी को।
सहारा तेरा भूलकर सोचना भी,
जहन्नुम बनाना ही है जिंदगी को।
…….,✍️प्रेमी