हैवानियत के पाँव नहीं होते!
सच है कि हैवानियत के पाँव नहीं होते!
अजीब सा मंज़र है –
हर ओर चीख़ें हैं – दर्द है
बस आँसुओं की सूखी लकीर है !
बेबस आँखें –
लुटी – कटी – फटी लाशों में
उनको ढूँढती हैं –
जो बस लम्हा पहले हमदम थे !
दरिंदगी के बादल – बस लहू ही बरसाते हैं
सच है –
दहशतगर्दी के कहीं ठाँव नही होते!!