हैरत नहीं की अब जान बेहतर है
हैरत नहीं की अब जान बेहतर है
मुझसे हुआ यह गुमान बेहतर है
अदा की है ज़नाब कीमतें बहुत ही
यूं ही नही आज ईमान बेहतर है
जो हुआ तो हुआ अब कहकर भी क्या
खामोश है मगर दास्तान बेहतर है
ठहर कर उदासी फिर चली जाती है
ख्यालो का एक ये मकान बेहतर है
ना जाने किस तसव्वुर में जीने लगे है
कि हकीकत मे भी अजान बेहतर है
कहें दिल से और सिर्फ दिल ही सुने
ऐसी गुफ्तगू की जुबान बेहतर है
छोडो भी मलाल गुज़री बातो क्रा ‘मनी
कुछ यादो का होना कुर्बान बेहतर है
शिवम राव मणि