नौशिखिया कलमकार
मैं नौसिखिया सा कलमकार,
नहीं वजनदार मेरी कविता।
कभी प्रखर प्रकाश नहीं दिखता,
जब बदली में निकले सविता।
शब्दों का वृहद आकार नहीं,
व्याकरण से कोई सरोकार नहीं।
रचना में गहरा सार नहीं,
नौका तो है पतवार नहीं।
मन में बिखरे स्वर व्यंजन से,
कतिपय उनमें चुन लेता हूँ।
अनकही कही कुछ बातों को,
कविता लय में बुन देता हूँ।
खुद लिखता खुद ही गाता हूँ,
नहीं मंच पर कभी सुनाता हूँ।
प्रसिद्धि नहीँ रही मेरी,
इस लिये नहीं इतराता हूँ।
हूँ सन्त चरण का अनुरागी,
रचना नहीं है मेरी जीविता।
कुछ बुन लेता कुछ सुन लेता,
कुछ गुन लेता मेरी कविता।
-सतीश शर्मा सृजन,
लखनऊ