हैं कोई
मेरे ख्वाबों में आकर मेरी रात बिगाड़ता है कोई ,
आँखों में आँख डाल कर जैसे निहारता है कोई ।
मैं जब भी तेरे पास आता हूं …ऐसा लगता है
तेरी जुल्फ़े संवारता है कोई ।
ये इश्क़ है या है कोई खेल ,
रोज यहाँ आकर दिल हारता है कोई ।
तुम्हें जब – जब देखता हूं इस जमीं पर ..
शिकायत बस यही होती है , ऐसे जमीं पे चाँद उतारता है कोई ।
हम ‘ हसीब ‘ है हमें वही रहने दो ,
आप , तुम , ये , वो करके पुकारता है कोई ।
यू खुले जुल्फ़ लेकर छत पर टहला ना करो ..
देखते देखते ऐसे निहारता है कोई ।
वक़्त की भी कोई साजिश लगने लगी है आजकल ,
दिन-रात ऐसे कभी जागता है कोई ।
मेरे दोस्त आजकल कह रहे तू शरीफ़ सा हो गया ,
भला ऐसे भी किसी को सुधारता है कोई ।
मुझे देखने के लिए थोड़ा शर्माया भी करो ,
यू आँखों को ऐसे फारता है कोई ।
हा है प्यार मगर ये तो नही ,
प्यार में ऐसे भी मारता है कोई ।
:-हसीब अनवर