हैंगर वाली दुनिया
हैंगर वाली दुनिया कहाँ थी पहले,सब कुछ एक कील में टंगा जाता था,कपड़े हो या ज़िन्दगी सभी को बड़ी ही खूबसूरती से सहेज जाता था!!
खाट सबके लिये बिछती थी क्या दोस्त क्या दुश्मन
क्या जाति क्या धर्म,चूल्हा सबके लिये जलता था उसकी आँच सबके लिये होती थी कोई भी हाथ सेक ले मनाही किसी को भी नहीं होती थी!!
हैंगर वाली दुनिया कहाँ थी पहले,सब कुछ एक कील में टंगा जाता था
एक कुण्डी में ही समेट लेते थे घर की सुरक्षा को
ताले चाभी का तब ज्यादा झंझट कहाँ होता था
कहाँ चोरी होती थी कहाँ डाका डालता था
शाम को तो हर घर मे युही झमघट लगता था!!
हैंगर वाली दुनिया कहाँ थी पहले,सब कुछ एक कील में टंगा जाता था
लम्बी लम्बी हाक भी देते थे कुछ बुजुर्ग मुछो को ताव यू देते थे,उनके घर का आँगन भले ही ना चौड़ा हो मग़र अपने दिल की चौड़ाई कम नहीं होने देते थे!!
हैंगर वाली दुनिया कहाँ थी पहले,सब कुछ एक कील में टंगा जाता था
रोग नहीं थे पहले हजार कुछ होता तो एक छोटी से पुड़िया में छू मंतर हो जाता था,कुछ रह गया गर तो दादी की झप्पी और बाबा के दुलार से इन्सान ठीक हो जाता था!!
हैंगर वाली दुनिया कहाँ थी पहले,सब कुछ एक कील में टंगा जाता था
अब वो कील नहीं रही जहाँ चाहे जो टांग दो
पूरा घर सजा लो मग़र अब वो फील नहीं रही!!
हैंगर वाली दुनिया कहाँ थी पहले…………..