हे सुबह तू इतनी जल्दी क्यूँ आ जाती है…
हे सुबह,
तू इतनी जल्दी क्यों आ जाती है,
चैन से सो रहा होता हूँ,
बनकर बेदर्दी इतना,
मुझे तू क्यूँ जगाती है ।
स्वपन मेरे हो गए धूमिल,
बिखर गए नींद के टुकड़े,
बांग मुर्ग़ा भी देता है,
बैठकर पेड़ पर चिड़िया भी,
मस्त धुन गुनगुनाती है । ……हे सुबह….
मैं मगन था,
उस सुबह प्रिये की याद में,
दिख रहा महबूब मुझको,
मनमोहक सी मस्त अदाओं में,
तेरे आने से नींद मेरी टूट जाती है ।…हे सुबह…
क्या मेरा हँसना,
तुझे न हज़म होता है,
तेरी वज़ह से महबूब मेरा,
मुझसे रूठ जाता है,
क्यूँ तुझे मुझपर दया न तनिक आती है ।…हे सुबह…
देख तू मुझको,
सता लेना अकेले में,
महबूब के आगे मेरी,
तू लाज रख लेना,
फिर तेरी हर बात क्यूँ “आघात” के मन भाती है ।…हे सुबह..