हे राम मेरे प्राण !
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। । ओ३म् । ।
* * * * * * * हे राम मेरे प्राण ! * * * * * * *
जय – जयकार रहे तेरी सदा
अयोध्या के राजा
करूँ तेरे गुणों का गान मैं
तू आ कि न आ जा
करूँ तेरे गुणों का गान मैं . . . . .
माँ जानकी की असीम कृपा
घर में क्लेश नहीं है
तू आये तो मैं धन्य – धन्य
न आये तो कुछ विशेष नहीं है
बच्चे थे अधिक भूखे
बेर कोई अब शेष नहीं है
मेरे मन के भावों का यदि
जँचे तो भोग लगा जा
करूँ तेरे गुणों का गान मैं . . . . .
भाग्य प्रबल नहीं था राजा दशरथ का
मिली न जो इक बेटी
बेटी है घर का ताज
समाज में होने न दे हेठी
वो कर्मों का फल था शूर्पणखा
सोने की लंका समेटी
महकता है मेरा परिवार – घर
बेटियों ने स्नेह से है साजा
करूँ तेरे गुणों का गान मैं . . . . .
भरत जैसे अनुज मेरे
कहा कभी टालते नहीं
मेरे लव – कुश कभी भी मेरा
अश्व थामते नहीं
बहुत दूर अयोध्या अभी विश्राम करो
हँस देते हैं बालक मानते नहीं
म्लेछ मरणहार छोड़ सभी
करते हैं मेरे काजा
करूँ तेरे गुणों का गान मैं . . . . .
नराधमों के दुराचार से अब
नार कोई शिला नहीं होती
करे तुरन्त अग्नि – स्नान कहीं
मिल जाए धरती पे सोती
बहुतेरी यहाँ जी रहीं – विष पी रहीं
जीवन – नर्क को ढोती
न विधान यहाँ अपना रहा
न मन से स्वदेशी हैं राजा
करूँ तेरे गुणों का गान मैं . . . . .
तू आए तो भरत को दिखाना
बिन तेरे क्या अनर्थ हुआ है
लक्ष्मण की सेवा – त्याग
उर्मिला का तप व्यर्थ हुआ है
मची है मारकाट यहाँ
जनसेवा का क्या अर्थ हुआ है
इक राजा की प्रजा थे तब
अब हर मोड़ पे राजा
करूँ तेरे गुणों का गान मैं . . . . .
हे राम मेरे प्राण तेरे बिन
मेरा कौन ठिकाना
हे हरि कौन हरे दु:ख
भरे सुख का खज़ाना
हनुमंत को लाना साथ में
रजतकेशी जाम्बवंत बुलाना
वही कहेंगे उड़कर वत्स
कुकर्मों की लंका पर छा जा
करूँ तेरे गुणों का गान मैं . . . . .
तू आए तेरा स्वागत किंतु
अयोध्या मत आना
अपनों ने तेरे ढहा दिया
तेरा घर वो पुराना
वो भोग रहे राजसुख और तू
आकाश तले छहों ऋतुएं बिताना
बेच खाये धर्म पाखंडी
अब शेष नहीं लाजा
करूँ तेरे गुणों का गान मैं . . . . . !
वेदप्रकाश लाम्बा ९४६६०-१७३१२