हे राम! तुम लौट आओ ना,,!
हे राम !!
तुम कहां हो ?
धरती या आकाश में ,
या पाताल में ?
धरती पर यदि हो तो कहां ?
पेड़ पौधों ,फूलों ,कलियों में,
बागों में ,खेतों या खलिहानों में ?
मंदिर में !
मंदिर में तो तुम्हारी मूरत मिलती है ,
परंतु मौन रूप में।
आकाश में यदि हो तो ,
होंगे चांद सितारों में ,
सूरज में ,नवग्रहों में,
आकाश गंगाओं में?
वैसे तो तुम इस सृष्टि के,
इस प्रकृति के कण कण में हो ।
परंतु दिखते क्यों नहीं !
हम पुकारते हैं तुमको ,
तुम आकर मिलते क्यों नही ?
तुम आकर देखो तो सही ,
तुम्हारा देश भारत (आर्यव्रत )
कितना बदल गया है !
तुम्हारा मनुष्य भी बहुत बदल गया है ।
तुम्हारे द्वारा प्रदान की गई ,
नीतियां , संस्कार ,शिक्षाएं , प्रेरणाएं ,
संस्कृति ,सभ्यता , और ,
उसमें निहित आदर्श परिवार की
परिकल्पनाएं ,
संबंधों की मर्यादाएं सब भुला दी गई हैं।
अब इस देश में राम राज्य का,
तनिक भी चिन्ह नहीं दिखता।
हे राम !
बड़ा व्याकुल है यह मन !
बड़ा संतप्त है ।
तुम वापिस लौट के क्यों नही आते ?
मानव धर्म की स्थापना करने हेतु ,
प्रदूषण से त्रस्त इस पृथ्वी और प्रकृति ,
की रक्षा हेतु ,
सरल , सज्जन परंतु कमजोर व्यक्तियों हेतु ,
तुम लौट आओ ना !
हे राम ! तुम लौट आओ ना !