हे मेरे राम !
हे मेरे राम !
जन जन के प्रिय नयनाभिराम !
तुम हृदयों में आ जा राम !
तुम आदर्श दिव्य स्वरुप हो
भारत के गौरव विश्वरूप हो,
तुम हो सजल अश्रु धार
तुम ही नौका-पतवार तुम ही विहार ,
तुम ही नदियों के किनार हो ,
तुम ही सागर बीच मंझधार हो !
तुम भारत के शौर्य भाल हो,
हृदयों में शांति लिए विशाल हो !
तू ही दर्शन तू ही व्यवहार ,
तुझमें शांति तुझसे शत्रु संहार !
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष चतुर्दिक प्रसार !
सुन्दर सुसंस्कृत ज्ञान-विज्ञान-संधान ,
सुखद् संसार कहां व्यवधान !
भक्ति-शक्ति उन्नत , सुमधुर प्यार ;
दग्ध हृदयों में शीतल संचार !
✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’
विजयादशमी ।