हे मानव
हे मानव
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सुख मे प्रसन्न
दुख मे रोता,
नवजात शिशु के क्रदंन को
हम क्या कहेंगे ?
विज्ञान कहता
स्वाभाविक प्रक्रिया,
गर्भ से बाहर अनजानी जगह
अनजाने लोग असुरक्षित समझ
रुदन क्रदंन हम कहेंगे।
माँ के सीने से लग
सुरक्षा का एहसास,
माँ की गोद सुरक्षित स्थान
समझ वो चुप होता।
दुख का अनुभव
सुख की अनुभूति,
हर किसी को कभी न कभी अवश्य होती
यही जीवन की पूर्णता।
इससे ही शक्ति सहजता शिक्षा मिलती
न सुख मे इतराओ
न दुख मे घबराओ,
इसी से जीवन उर्जा हमे मिलती।
सुख से लो शांति पवित्रता औ शुभता
दुख से लो जरूरी सबक,
विडम्बना दुख न चाहे कोई
सुख वो भी सुविधानुसार चाहे हर कोई।
सुख दुख मानव कर्मों के परिणाम
जो माँ की गोद समान सुरक्षित
हे मानव !
विसंगति मनोविकार त्याग सुख पाओ
परिणाम को सहजता से स्वीकार करो।
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
?
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297
प्रकाशित साझा काव्य संग्रह