हे मात भवानी…
हे मात भवानी, जग कल्यानी, शुभ गुणखानी, अंबे माँ।
नित भोग लगाऊँ, मन से ध्याऊँ, तुझे रिझाऊँ, अंबे माँ।
मैं पाप-पिटारी, जग की मारी, भक्त तुम्हारी, कृपा करो।
मुद मंगलकारी, भव भय हारी, कष्ट हरो हे, अंबे माँ।
सावन मनभावन, हर पल हर छन, याद तुम्हें मैं, करती हूँ।
ये तरह-तरह का, ताप विरह का, जला न डाले, डरती हूँ।
बदरा छाएंगे, सुख लाएंगे, आस लगाए, जीती हूँ।
मारे जग प्रस्तर, चुभते नश्तर, धीर धरा सा, धरती हूँ।
उजड़ी फुलवारी, जीना भारी, किसी तरह सखि, जीती है।
रोती जाती है, गम खाती है, भर-भर आँसू, पीती है।
दुखिया बेचारी, गम की मारी, सकुची-सिमटी, रहती है।
नित खैर मनाती, प्रिय को ध्याती, कुछ न किसी से, कहती है।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )