हे माँ तू मेरी जन्नत है..
वो भी एक दौर था..
जब माँ के आँचल में आकर, हम छुप जाया करते थे |
वो भी एक दौर था..
जब अपनी तोतली भाषा में, माँ को समझाया करते थे |
वो भी एक दौर था..
जब लगा कर माथे पर काज़ल, माँ मुझको चूमा करती थी |
वो भी एक दौर था..
जब लगा कर अपने सीने से, माँ मुझको घूमा करती थी |
हर उस एक-एक दौर को, हम यूँ ही भूला दें फिर कैसे
जो हरपल मेरी फिक्र में, खुद को भूलाया करती थी |
हम यूँ ही भूला दें फिर कैसे ..
जो गीले बिस्तर पर सो कर , सूखे पर सुलाया करती थी |
पल भर को नज़र ना अाऊं जो, तो वो घबराया करती थी |
मिल जाता था जब माँ को मैं, सीने से लगाया करती थी |
हैं बचपन की वो सब यादें, जो दिल में बसाये रखा हूँ |
हे माँ तू मेरी जन्नत है, तुझे पलकों पे साजये रखा हूँ |
-आकाश त्रिपाठी (जानू )