हे मनुष्य!
हे मनुष्य!
सोचो, कहा है। आप
आगे या पीछे
आप आगे समझकर दस गुणा पीछे जा रहे हो।
हे मनुष्य! सोचो। कहा हो आप।
हे! क्या कर रहे हो आप
न्याय और ज्ञान को बेच रहे हो।
अन्याय और
अज्ञान को खरीद रहे हो।
धर्म को भूल कर
अधर्म को अपना रहे हो।
हे मनुष्य! क्या कर रहे हो आप।
हे मनुष्य! आप क्या पा रहे हो।
प्यार की जगह पैसा
मात-पिता की जगह मोती, दौलत।
अपना परायी होगया,
परायी अपना होगया।
इर्षा, असूया, असत्य, अलसी दोस्त होगया।
हे मनुष्य! क्या पा रहे हो आप।
हे मनुष्य! आप सुखः मे हो या दुःख में हो।
आप सुखः के लिए ही दुःखी हो।
हे मनुष्य! क्या हुआ।
उठो, नींद में से उठो।
कबतक नींद में रहते हो।
उठने का समय आगया।
सोचो और समजो
नही तो, अंतिम क्षण भी आयेगा।
अपना समय आगया।
हे मनुष्य! जागो।जागो।जागो।
जि. विजय कुमार
हैदराबाद
तेलंगाना