हे बापू ! यह क्या कर गए तुम ?
हे बापू ! यह क्या कर गए तुम ?
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हे बापू ! यह क्या कर गए तुम ?
बुरा बोलने वाले को-
जरूरत ही क्यों पड़ती बुरा बोलने की ?
बुरा सुनायी भी न पड़ता…
यदि कोई बुरा न बोलता .
यदि बुरा हुआ ही न होता-
तो बुरा दिखायी ही कैसे देता ?
हे बापू ! यह क्या कर गए तुम ?
तीन बन्दरों के बजाय एक ही बन्दर पाल लेते..
जो मात्र यह सिखा गया होता…
‘बुरा मत करो’
तो इन तीनों की जरूरत ही न पड़ती !
यदि बुरा किया ही न जाता..
तो दिखायी कैसे देता ?
यदि बुरा हुआ ही न होता..
तो बुरा बोलने की जरूरत ही क्यों पड़ती ?
बिना बोले- तुम ही बताओ…
बुरा सुनायी देता क्या ?
हे बापू ! यह क्या कर गए तुम ?
बन्दर नेक दे जाते …
भले ही एक दे जाते !
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हरीश चन्द्र लोहुमी, लखनऊ (उ.प्र.)
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(-लेखक के निजी भाव )