हे बसन्त तू क्यो आया
हे वसन्त तू क्यों आया।
दसों दिशा से चढ़ आया।
मादकता का मौसम क्या,
हर डाली इतराती है।
सूखी सूखी टहनी पर ,
तेरी लाली छाती है।
फूल बाग में देखो तो,
छटा बिखेरे जाते है।
पता नही कहाँ कहाँ से ,
भृमर निकल कर आते है।
कोकिल कुंजे मानो तो ,
राग सुनाने आई हो।
जिनके पास नही हूनर ,
उन्हें लजाने आई हो।
जगह जगह पर इठलाती ,
देखी जाती वल्लरियाँ।
चार कदम की दूरी पर ,
लिपटी जाती है फलियां।
मादकता के व्यापारी ,
मुफ्त पिलाये जाता है।
जिनके लब सूखे बरसों ,
जोश जगाए जाता है।
तेने सब मदहोश किये ,
तूने जग को भरमाया।
हे बसन्त तू क्यों आया?
दशो दिशा से चढ़ आया।
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बिना गन्ध का किंशुक भी,
देखो लगता गदराया।
जंगल सकल धधकता है ,
वर्ण अनल सा नज़राया।
मगर पास जाकर देखो,
टहनी सूखी बस माया,
आकुल है तन्हा जोगी,
व्याकुल है इकली दाया।
विरह वन्हि वासन्ती बन,
झुलसाती कंचन काया ।
अमराई रौनक आई,
दीखै अमुआ बौराया।
सब मस्ती में झूमेंगे ,
फागुन अब चढ़ कर आया।
हे बसन्त तू क्यो आया।
दशों दिशा में बढ़ आया।
कलम घिसाई