हे प्रिये…
कैसे तुमको खुश कर पाऊं ,
समझ नहीं आता मुझको ।
क्या है ? तुमको प्रिय ,
कुछ तुम ही बतलाओ हे ! प्रिये…
मैं अगूढ़ अज्ञानी हूं ,
मर्म की बात समझ न पाऊं ।
प्रेम का अक्षर पढा़ नहीं ,
पढ़ लिखकर भी अज्ञानी हूं ।
कैसे तुमको खुश कर पाऊं,
कुछ तुम ही बतलाओ हे ! प्रिये…
जग तो हंसता मेरी बातों पर ,
पर कैसे तुमको हंसाऊं !
जो न तुमको हंसा सका तो,
होगी मेरी जग हंसाई ।
कैसे तुमको खुश कर पाऊं ,
कुछ तुम ही बतलाओ हे ! प्रिये…
यों न रूठों मेरी बातों पर,
ना पसंद हो मुझे बताओ ।
मौन व्रत मैं धारण कर लूं ,
तेरी रुसवाई सही न जाए ।
कैसे तुमको खुश कर पाऊं ,
कुछ तुम ही बतलाओ हे ! प्रिये…
दिल के तार झंकृत होते,
तेरी मुग्ध मुस्कानों से ।
कैसे तेरे लवों पे भर दूं ,
वो प्यार भरी मधुर मिठास ।
कैसे तुमको खुश कर पाऊं ,
कुछ तुम ही बतलाओ हे ! प्रिये…
माना मेरी गलती है ,
तनिक न दे सका तुमको टैम ।
कुछ मेरी भी मजबूरी समझो ,
वरना ऐसी घडी़ न आती ।
कैसे तुमको खुश कर पाऊं
कुछ तुम ही बतलाओ हे ! प्रिये…
हां मैं तेरा अपराधी हूं ,
चाहे जो सजा दे दो ।
तेरे हर सितम को सह लूं ,
पर ये बेरुखी सही न जाए ।
कैसे तुमको खुश कर पाऊं ,
कुछ तुम ही बतलाओ हे ! प्रिये…
पर एक बार मेरी जगह ,
खुद को रखकर देखो ।
कितना निरीह और नीरस ,
उलझाऊ लगता है ये जीवन ।
कैसे तुमको खुश कर पाऊं ,
कुछ तुम ही बतलाओ हे ! प्रिये…
दिल दिमाग पर जोर नहीं ,
दोनों बैठे बंद कपाट ।
आंखों के आगे छाया अंधियारा ,
प्यार की जोत जला दो प्रिय ।
कैसे तुमको खुश कर पाऊं ,
कुछ तुम ही बतलाओ हे ! प्रिये…
दिल की धड़कन हुई अनियंत्रित ,
रक्त चाप ने पकडा़ जोर ।
अब तो फटने बाला है ये रक्त गुबार ।
कैसे तुमको खुश कर पाऊं ,
फिर कब बतलाओगे हे ! प्रिये…
फिर कब बतलाओगे हे ! प्रिय…