हे! प्रभु आनंद-दाता (प्रार्थना)
प्रार्थना मनुष्य के मन की समस्त विश्रृंखलित एवं चारों तरफ भटकने वाली प्रवृतियों को एक केन्द्र पर एकाग्रचित करने वाला मानसिक व्यायाम है। प्रार्थना एक ऐसा कवच है जो डर या भय से हमारी रक्षा करते हुए हमें सत्य, ज्योति, और अमृत को प्राप्त करने के लिए समर्थवान बनता है। रामनरेश त्रिपाठी ‘पूर्व छायावाद युग’ के कवि थे। उन्होंने कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। अपने 72 वर्ष के जीवन काल में उन्होंने तक़रीबन सौ पुस्तकें लिखीं। ग्रामीण गीतों का संकलन करने वाले वे हिन्दी के पहले कवि थे। उनके ग्रामीण गीतों की संकलन ‘कविता कौमुदी’ को विशेष सम्मान मिला है। राम नरेश त्रिपाठी जी की सबसे प्रमुख कृति ये प्रेरणादाई गीत है जिसे आज भी कई पाठशालाओं में प्रार्थना के रूप में गाया जाता है। इस लोकप्रिय प्रसिद्ध प्रार्थना ने ‘त्रिपाठी जी’ को अमर बना दिया।
हे! प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए,
लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें,
ब्रहम्चारी धर्म-रक्षक वीर व्रत धारी बनें, हे प्रभु—
निंदा किसी की हम किसी से भूल कर भी न करें,
ईर्ष्या कभी भी हम किसी से भूल कर भी न करें, हे प्रभु—
सत्य बोलें, झूठ त्यागें, मेल आपस में करें,
दिव्य जीवन हो हमारा, यश तेरा गाया करें, हे प्रभु—
जाये हमारी आयु, हे प्रभु लोक के उपकार में,
हाथ डालें हम कभी न भूल कर अपकार में, हे प्रभु—
कीजिए हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा,
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा, हे प्रभु —
प्रेम से हम गुरु जनों की नित्य ही सेवा करें,
प्रेम से हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें, हे प्रभु —
योग विद्या ब्रह्म विद्या हो अधिक प्यारी हमें’
ब्रह्म निष्ठा प्राप्त करके सर्व हितकारी बनें,
हे! प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए,
लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें,
ब्रहम्चारी धर्म-रक्षक वीर व्रत धारी बनें।
पंडित राम नरेश त्रिपाठी जी में कविता लिखने के प्रति रूचि प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के समय से ही शुरू हो चुकी थी। पंडित जी की प्राथमिक शिक्षा गांव के पाठशाला में शुरु हुई। प्राथमिक कक्षा उतीर्ण करने के बाद जौनपुर जिले के हाईस्कूल में पढ़ने के लिए जाने लगे। किसी कारण वश पिता से अनबन हो गई और जिससे वे हाई स्कूल की शिक्षा पूरी नहीं कर सके और कोलकाता (कलकता) चले गए। संक्रामक रोग हो जाने के कारण पंडित जी अधिक समय तक कोलकाता नहीं रह सके। किसी व्यक्ति के सलाह से वे स्वास्थ्य सुधार के लिए जयपुर के सीकर में स्थित फतेहपुर ग्राम में एक सेठ रामवल्लभ नेवरिया के पास गए। पंडित जी मरनासन स्थिति में अपने घर और परिवार में नहीं जाकर इतनी दूर एक अपरिचित अजनवी राजपूत परिवार के पास गए जहाँ पहुँचते ही उनका शीघ्र इलाज शरू हो गया। वहाँ की जलवायु और शीघ्र इलाज से पंडित जी धीरे-धीरे रोग मुक्त हो गए। वहीं रहकर पंडित जी ने रामवल्लभ जी के पुत्रों को शिक्षा देने का काम किया। पंडित जी ने रामवल्लभ जी द्वरा दिए गए इस जिम्मेदारी को बड़ी ही कुशलता पूर्वक निभाया। इसी दौरान उनपर माँ सरस्वती की कृपा हुई और उन्होंने यह प्रार्थना लिखा था। “हे प्रभु आनन्दाता ज्ञान हमको दीजिए”—- पंडित जी की यह सबसे बेजोड़ रचना थी जिसे आज भी यह प्रार्थना के रूप में अनेक स्कूलों में गाई जाती है। पंडित जी की साहित्य सृजन की शुरुआत फतेहपुर से ही हुई थी। उन दिनों पंडित जी ने बाल उपयोगी काव्य संग्रह, सामाजिक उपन्यास और हिंदी महाभारत लिखे। वहीं पर पंडित जी ने हिंदी और संस्कृत के सम्पूर्ण साहित्य का गहन अध्ययन किया। सन् 1915 ई. में पंडित जी ज्ञान और अनुभव की पूंजी को लेकर प्रयाग आ गए और उसी क्षेत्र को उन्होंने अपनी कर्मस्थली बनाई।
जय हिन्द