हे पौरुषत्व –अपील है तुमसे हमारी
Displacement of anger मैने सुना था और Displacement of energy मैने खोजा है। हर रोज हम हमारे नवयुवकों, गली में पाए जाने वाले छिछोरे लड़कों या पुरुषों—की शौर्य एवं वीर गाथाएं तो सुनते ही हैं, देखते भी हैं और नि:संदेह कई बार तो भुगतना भी पड़ता है। मैं सोच रही थी कि इनमें वीरता, साहस, निडरता और जोश के इतने गुण कूट-कूट के भरे हैं तो इन्हें युं बर्बाद क्यों किया जा रहा है बल्कि इन्हें अपने इन गुणों का प्रयोग देश के लिए करना चाहिए । कुछ नाम तो हो इनका।
वर्ना बेचारे, या तो थप्पढ़ खाते हैं या गालियां और कभी-कभी तो जेल की भी सैर करनी पड़ती है। इनके लिए ही यह अपील तैयार की है मैने—
हे पौरुषत्व तुम्हारी मुझे युं
सिर से पांव तक चीरती हुई नजरें,
इस तीर कटारी को भ्रष्ट राजनीति
पर चलाओ,
हमारे देश में भ्रष्टाचार का जो
तेजी से फैल रहा है महाजाल
तुम इस काट पाओ,
तो शायद तुम कुछ सार्थक कर पाओ
जिस बहादुरी और साहस से
तुम मुझे खुले बाजार में
छेड़ने का कॉंड करते हो,
मेरी एक ‘न’ से हो जाते हैं,
जो तुम्हारे अंहकारी अह्म के
सौ-सौ टुकड़े, कि तुम
भरी-भीड़ में मेरी देह
पर ऐसीड की बोतल
उड़ेल जाते हो,
इस निडरता और जोश
से तुम मेरे देश की आन-शान बढ़ा पाओ
तो शायद तुम कुछ सार्थक कर पाओ
इतना आंतक है तुम्हारा कि
घरों की नन्हीं मासूम परियां
आंगन, गलियों में निकलने में
झिझक करती हैं,
तुम्हारे नापाक इरादों के तो निकले
है ये नतीजे कि अनखिली कलियां ये
गर्भ में ही बेरहमी से कुचली जाती हैं,
लोहा ही काटता है लोहे को, पता है सबको
काश! अपनी आंतकी जीन्स से तुम मेरे
देश में फैल रहे आंतकी मनसूबों को
मिटा पाओ
तो शायद तुम कुछ सार्थक कर पाओ
मीनाक्षी 17-08-17© सर्वाधिकार सुरक्षित