हे पिता ! जबसे तुम चले गए …( पिता दिवस पर विशेष)
हे पिता ! जबसे गए तुम ,
हमारी दुनिया ही उजड़ गई ।
हर आनंद जीवन का और ,
हर खुशी जमाने कि छिन गई ।
वो सुकून ,वो चैन ओ करार,
वो मस्ती भी कहीं खो सी गई ।
तुम्हारा सर पर साया था जब तक ,
हमें कभी गम की हवा छू न पाई ।
और जब तुम चले गए जबसे चमन से,
आंधियां सी दर्द ओ गम की चल गई ।
क्या बताएं ! इस दुनिया ने कितना सताया,
बहुत तड़पा दिल ,आंखें तुम्हारे पहलू में रोई।
मगर तुम्हें कुछ एहसास है या नहीं,
क्योंकि कभी पैगाम तूने भेजा ना कोई ।
सपनों में भी अब तो कभी कभी आए,
खामोश रहें लब तेरे बात न करे कोई ।
क्या तुम अपना प्यार दुलार सब भूल गए ,
हमने तुम्हारे साथ साथ यह दौलत भी खोई ।
अब और क्या शिकवा शिकायत करें ,
जाने वालों पर किसी का बस चलता है कोई ?
अब जहां भी रहो खुश रहो तुम ,आबाद रहो,
हम अनाथों का नाथ ईश्वर के सिवा है ना कोई ।