हे नारी अब तुम कठोर बन जाना
हे नारी तुम अब कठोर बन जाना
रूप एक नया सबको दिखलाना
कोमल काया से शीला सी जड़ हो जाना।।
त्याग ममता प्यार की मूरत हो तुम
माँ पत्नी बहन व बेटी बनकर
स्नेह तुम दे जाना।
फूलों सी कोमल देह लेकर ठहरी जो तुम
रोक ले जो राह तुम्हारी अंगारा भी बन जाना
कभी दुर्गा बनकर सौम्य रूप दिखाना
सताए जो कोई तुमको फिर चंडी भी बन जाना
शक्ति का रूप हो तुम शिव की शिवा
कहलाती हो
तुम बिन है नियति अधूरी तुम पूर्णा भी कहलाना।
प्रेम अथाह तुम्हारे हृदय में भरा
सरल नहीं तुम्हारे मन का अनुमान लगा जाना।
मिटा जाए जो कोई पहचान तुम्हारी
उन पर कोई तरस न खाना
हो तुम भी एक मानव आखिर ये विस्मृत न कर जाना।।
दहेज,लोभ के दानवों पर कोई दया न दिखलाना
प्रेम से भरा कोमल मन सा तुम्हारा
कर जाए छल कोई फिर उसको क्षमा न कर जाना
कभी जानकी ,अहिल्या और लक्ष्मी बनकर मातृभूमि की शान बढ़ाना।
“कविता चौहान
स्वरचित एवं मौलिक