हे नाथ ! अब आँखें खोलो
हे नाथ ! अब आँखें खोलो,
नहीं चाहिए टैबलेट ‘डोलो’।
चहुँओर दिख रहा भयानक सीन,
फेंको दूर अब ‘एजीथ्रोमाइसीन’।
‘सी’, ‘डी’, ‘जेड’ को दूर भगाओ,
‘बीटाडिन’ से गला बचाओ।
‘डॉक्सी’, ‘डेक्सा’ से सब हैरान,
‘भाप’ से फेफड़ा परेशान।
नहीं मिलता कहीं रिलेक्स,
खाँसे तो सताए ‘एलेक्स’।
‘ऑक्सीजन’ का भूत सताए,
नहीं मिले तो जान गवाए।
‘रेमडेसिविर’ का डोज रूलाए,
नहीं मिले तो डॉक्टर दौड़ाए।
समय बनाया सबको ‘दीन’,
‘कीड़ीमार’ बना दिया ‘आइवरमैक्टिन’।
भूत भगे, भौंचक चांडाल,
मरघट को भी ढक रहा काल।
दलदल में फंसे हैं ‘शेर’,
हे प्रभु, अब तुम न कर देर।
देखो मनुज कैसा लाचार,
जमाखोर बोलें बहार।
काने कौवे बोल रहे हैं,
गिद्ध चतुर्दिक डोल रहे हैं।
चुन्ना-चुन्नी हुए हैं कैद,
गाजा-बाजा कहाँ हैं गद्गद।
क्या हो राजा, क्या हो रंक,
सबको मारे कोराना डंक।
कोरोना को कैद में डालो,
है प्रार्थना, ब्रह्माण्ड बचा लो।
हे नाथ ! अब आँखें खोलो,
‘चन्द्रभाल’ तुम विश्व बचा लो।
……..
– डॉ. सूर्यनारायण पाण्डेय