हे नव प्रात
मत्तगयंद सवैया छंद
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मापनी-211/ 211/211/211, 211/211/211/22
हे नव प्रात! सदा नव जीवन,
लेकर नित्य धरा पर आना।
सूरज की किरणें बिखरा कर,
अंतस के तम को हर जाना।
हो सुखदायक मोहक मौसम,
शीतल ,शुद्ध हवा महकाना।
साहस, सौरभ अंग भरो तुम,
संग सभी खुशियाँ भर लाना।
प्राण भरो जन जीवन में नव,
आँगन में नित फूल खिलाना।
जोश नया भर दो सब में तुम,
आलस दुर्गुण दूर भगाना।
हो जग सुन्दर, पावन, शीतल,
अद्भुत मानव रूप सजाना।
भाव भरो हम लेखक में तुम,
मोहक-सी कविता उपजाना।
लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली