हे त्रिलोकी
हे त्रिलोकी
*******
हे त्रिनेत्रधारी हे त्रिलोकी
हे अविनाशी से औघड़दानी
हे शिवकाशी, हे चंद्रधारी
तुम ही शिव हो, तुम ही शव सम हो
हे गौरापति, तुम ही स्वामी त्रिलोक हो
तुम्हीं विनाशक, तुम ही मुक्तिदाता
तुम शांत सौम्य शीतल हो
तुम ही हर प्राणी के रक्षक हो।
हे तीन नयन वाले महाकाल
तुम बड़े ही भोलेभाले हो,
निर्मल मन से जो तुम्हें पूजता
तुम उसके सब दुःख हरते हो,
क्रोध तुम्हें जब आ जाये
और तीसरा नेत्र जब खुल जाये
तो विनाश का तांडव नृत्य
सारी दुनिया को नजर आये।
हे त्रिलोकी बनी रहे
कृपा तुम्हारी जन जन पर
बोल रहे हैं हम सब ही
बम बम भोले जय शिवशंकर
कार्तिकेय, गणेश के पिता हो तुम
पहाड़ पर रहते हो तुम
भांग धतूरे में मस्त मग्न
मौन अधिक रहते हो तुम।
नमन वंदन हम करते हैं
हम पर अपनी कृपा करो,
बरसाओ करुणा का सागर
जन जन का अब उद्धार करो
भूल हमारी भूल प्रभु
हम सबका कल्याण करो।
हे त्रिलोकी नाथ तुम अपने
नाम का तो तुम ध्यान करो
हम जय जयकार तुम्हारी करते
इस पर भी अपने कान धरो।
हे प्रभु जगत कल्याण करो।
एक बार फिर से प्रभु
डमरु का जयनाद करो।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित