हे जगत जननी मां।
हे जगत जननी मां,सुन लो मेरी पुकार।कितनी भीड़ है तेरे दरबार। जिसमें कोई नहीं भक्त शुमार।हे जगत जननी मां सुन लो मेरी पुकार। दुष्टों को , क्यों पाल रही है। अपने दरबार में भीड़ लगा रहीं है।अब तो धरनी का उतारो बार।हे जगत जननी मां सुन लो मेरी पुकार। ये भीड़ क्या क्या कर रही है।दया धर्म को छोड़ तुझे मना रही है। अपने स्वार्थ की, खातिर कर रही पुकार। कितने जन्म चुके हैं महिषासुर अब कैसे करोगी इनका संहार।हे जगत जननी मां सुन लो मेरी पुकार।अब गया जमाना खड्ग और तलवार।अब चल रहें हैं आधुनिक हथियार।अब सज्जनों का जीना हुआ दुशवार।हे जगत जननी मां सुन लो मेरी पुकार।।