हे गोविंद!
उमड़ घुमड़ घिर घिर आए बदरा
मोर चकोर करे नृत्य अगरा ।
सावन झर बूंदें बनी कंचन
गावत राग मल्हार पिया संग।
श्याम सुंदर छवि मोर मुकुट सजि
राधा रानी आंजत अँख कजरा ।
उमड़ घुमड़ घिर घिर आए बदरा
मोर चकोर करे नृत्य अगरा ।
कुंज गलिन में रास रचाए
संग राधा गोपिन भरमाए
बैठी कदंब कसी पितांबरी
पुलकित छवि समाहित हियरा।
ढोल मृदंग संग लिए झंझरा
वेणु अधर मदमस्त उर मदना
पार करो भवसागर प्रभु अब तो
व्याकुल चित कलुषित मन भ्रमरा।
हे गोविंद! चरण – रज उर धरि
मानष मन चंचल, छली, तामषि
क्षमा – सिंधू सरोज पग चारणि
बारम्बार सेवत हरि ब्रम्हणा।
उमड़ घुमड़ घिर घिर आए बदरा
मोर चकोर करे नृत्य अगरा ।