हे गुरुवर !
हे गुरुवर, हे पुज्यवर, मैं श्रद्धानत हूं, आपके चरणों पर
उठाओ मुझे, हृदय से लगा लो, सदा रहूं आपके उर में।
मन तेरा है, तन तेरा है, सब तेरा है, मंजिल आप ही हैं
तुमको पा लूं, दिल में रह लूं, चेतना ऐसी सच कर दो।
घना अंधेरा है,अंतर्मन में, पथ में, राह में, सदमार्ग में
लक्ष्य मिल जाए मेरा, उत्साह लगन मन में भर दो
गुरु हैं, निर्देशक हैं, संकेतक हैं, संबल सहारा हैं मेरा
बाधा, बाधक, बंधन, हर संकट को, हम से दूर कर दो।
बढ़ रहा है अंधेरा, अंधकार, सिमटता जा रहा है प्रकाश
अरुणोदय से पहले, समस्त तिमिर को तिरोहित कर दो
पाप हरों, ताप हरों, जड़ता हरों, सारा जग शीतल करदो
सुख शांति, सत्य अहिंसा, जन -जन के मन में भर दो।
हम जोड़ेंगे सबको, न तोड़ेंगे हम किसी के भी उर को
दीप से दीप जलाएंगे, आलोकित पथ सबका कर दो।
रीति, नीति, प्रकृति, प्रवृति से हमें आप परिपूर्ण कर दो
हुई हो भूल से भी कोई भूल, प्रार्थी हूं मैं, क्षमा कर दो।
संकल्प से सिद्धि तक पहुंचू, मुझको ऐसा वर दे दो
आप की अपेक्षाओं को, पराकाष्ठा तक पहंचाऊ मैं
न डिगू, न दिग्भ्रमित होऊं, न पलटू, ऐसी भक्ति दे दो
कलुषित अंतर्मन को, सहजता से आलोकित कर दो।
श्रृद्धानत हूं आपके श्रीचरणों पर, चरणामृत मुझे दे दो
उठा लो मुझे, मेरे कानों में, अब अपना श्रीमंत्र दे दो।
अलख जगाने दो, परचम लहराने दो, प्रेम फैलाने दो
मानवीय- सभ्यता- संस्कृति को सनातन अपनाने दो।
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@स्वरचित : घनश्याम पोद्दार, मुंगेर