#हे गिरधारी
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★ #हे गिरधारी ★
सांझ – रात के मिलन की बेला
बीती मीठी यादों का मेला
कौन कहे अब कौन सुने रे
तारों की छैयाँ मन यह अकेला
नैना बरसें बोझ है भारी
हे गिरधारी !
इक – इक करके सपने टूटे
कौन पराये अपने रूठे
कसमें – वादे झूठे सारे
तन को सजाये गहने झूठे
झीनी चदरिया झूठी फुलकारी
हे गिरधारी !
अपनों का कुछ दोष नहीं है
क्या मैं बोलूं होश नहीं है
देता जाए दाता नहीं थकता
मेरे मन संतोष नहीं है
मांजत – मांजत कलई उतारी
हे गिरधारी !
राजा से रंक रंक से राजा
तेरा खेला तुझको साजा
पकड़ी गई है मेरी चोरी
मेरी मैं का बज गया बाजा
अब न मिले उधारी
हे गिरधारी !
नहीं लुभाते महल – दुमहले
मिटी लालसा जो थी पहले
नींद से नयना रूठ गए हैं
ले ले अपनी शरण में ले ले
देख मेरी लाचारी
हे गिरधारी !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२