हे कृष्ण कन्हैया!
हे कृष्ण कन्हैया ! रास रचैया !! अब तो मुझे पुकार लो
है नाव मेरी भव-सागर अटकी, आ कर इसे उबार लो
अपने पग की धूल बना दो
पथ से मेरे शूल हटा दो
दे कर ज्ञान-चक्षु मुझको भी,
मेरे मन के फूल खिला दो
हे राधा नागर! गिरिधर!! मोहन!!! मन के सभी विकार लो
देश न जानूँ, काल न जानूँ
मूक और वाचाल न जानूँ
नृत्य और संगीत भला क्या,
सरगम के लय-ताल न जानूँ
हे नटवर नागर! मुरलीमनोहर!! मेरी भूल सुधार लो
अहंकारवश वन-वन भटकूँ
भ्रमित ज्ञान पा दर-दर अटकूँ
माया-पथ पर हे ‘असीम’ ! मैं
पग-पग पर दर्पण सा चटकूँ
हे मधुसूदन! गोपाल!! श्याम!!! भ्रम-गगन से मुझे उतार लो
©️ शैलेन्द्र ‘असीम’