हे कविवर! अब तुम लिखो
हे कविवर! अब तुम लिखो
देश की खातिर लेखन को
देश हमारा मांग रहा है
स्याही के कुछ बूंदों को
देश हमारा धधक रहा है
नफ़रत की अब आग में
कैसे कह दूं मेल नही अब
है गीता और कुरान में
गंगा ज़मुना की तहजीब का
अब, देखो कोई मेल नही
सच बोलो हे! भरत वंशजों
क्या राजनीति का खेल नही
इतिहास हमारा जो भी था पर
तुम, इतिहास नया बनाओगे
“वसुधैव-कुटूंबकम्” की धरती को
क्या इस लाज से बचाओगे ?
बंद करो हे नर – दानवो
आपस के इन झगड़ों को
आपस में कोई हल निकालो
सुलझाओ इन मसलों को
हे! कविवर कलम उठाओ
देश की खातिर लेखन को
देश हमारा मांग रहा है
स्याही के कुछ बूंदो को
©®
राहुल कुमार विद्यार्थी
17/12/2019