‘हे कविता तुझे नमस्कार!’
भाव भरी रसधार
तू ही मेघ मल्हार।
लय ताल में गुंथे
करते नाद वर्णहार।
ललित मधुर मनोरम रूप
अभिधा,व्यंजना, लक्षणा अनूप।
वदन विविध अलंकार।
करती नाना ध्वनि छल-छल, कल-कल
घन गर्जन दमक दामिनी
छनकाती नुपुर मादक झंकार।
ललक प्रिय की झलकाती झलक
इठलाती पवन बन झुलाती झंकृत करती
हृदय के तार।
हे री ! तुझ बिन बसंत कहाँ?
तू है नव यौवन प्रकृति श्रृंगार।
राग-रंग खिलते तुझसे ही
तू रति सी अवतरित
अवतार।
सरस साहित्य विधा
श्रुति सुन हुए मुग्ध तुझे
कविजन की बन
दूत बांचती विचार।
हे कविता !तुझे
नमस्कार।