हे ईश्वर!
हे ईश्वर!इतना भी दर्द न दो
कि हमें सहना मुश्किल हो जाए
और हम तुम्हारे सामने घुटनों के
बल बैठना ही भुल जाएँ।
माना कि तुम हो अन्तर्यामी
और मैं हूँ इस धरती का अज्ञानी ।
तुम्हारी परीक्षा लेने की फितरत है
और हमें परीक्षा देने की आदत।
तुम जो भी करते हो
सोच-समझ कर करते हो,
और मै नादान कहाँ तेरी
हर खेल समझ पाती हूँ।
इसीलिए तो कोई भी समस्या
का हल निकालने के लिए ,
तेरे पास दौड़ी -दौड़ी चली आती हूँ।
तुझसे मदद की गुहार लगाती हूँ।
मुझे पता है कि यह समस्या भी
तेरा ही भेजा हुआ है।
इसलिए तुम ही से इस समस्या,
के समाधान के लिए अर्ज लगाती हूँ।
तेरे चरणो में घुटने के बल बैठकर ,
तेरे आगे हर समय मैं झोली फैलाती हूँ।
मुझे जो तुमने दिया उसकी शिकायत
न है मुझे।
मुझे शिकायत है इस बात से कि
आज जब इन्सान, इन्सान का खून
बहा रहा है।
कही युद्ध तो कही दंगा छिड़ते जा रहा है।
कहीं धर्म के नाम पर भाई-भाई में
महाभारत छिड़ते जा रहा है।
यह सब देखकर भी तुम क्यों मौन साध रखे हो।
क्यों उन सब को एक-दूसरे का खून बहाने दे रहे हो।
क्यों न तुम आकर बता रहे हो ,
कि सब तुम्हारा ही रुप है।
इस धरती के हर एक कण में तुम रहते हो।
क्यों नही एकबार धरती आकर
हमलोगों को समझाते हो।
क्यों न तुम आकर डाँट लगाते हो ,
क्यों न आकर कहते हो कि,
जाति,मजहब, धर्म के नाम पर न लड़ों,
क्यों इंसान को हैवान बनने दे रहे हो,
क्यों न इन सब को रोक रहे हो।
आज जब बेगुनाहो का खून
बह रहा है।
जब स्त्रियों का शोषण हो रहा हैं,
इनका चीरहरण हो रहा है।
कई बच्चे अनाथ हो गये हैं,
कई भुख से तड़प रहे हैं।
यह सब देखकर भी तुम
क्यों नही आ रहे हो,
मेरी यह विनती है ईश्वर,
हम लोगो के विश्वास को
डगमगाने से पहले और
इंसान को हैवान बनने से पहले
तुम इस धरती पर अवतार लेकर
हम सब को बचा लो।
हम सब को तुम अपना रूप दिखा दो
हम सब का विश्वास तुम पर बना रहे
और तुम्हारा डर हम सबको लगा रहे।
ऐसा कुछ तो चमत्कार करो हे ईश्वर!
~अनामिका