हे ईश्वर– किसान हैं हम!
वक्त तो नहीं था, यो तुम्हारे आने का।
बन काली घटाएं ,गगन पे छा जाने का।
खेतों में पड़ी है फसलें हमारी, मर्जी क्या है तुम्हारी।
है वैसे ही परेशान, ढूंढ लिया मौका हमे और सताने का।।
उमड़ घुमड़ कर गरज रहे हो, ओले बन बरस रहे हो।
कमाई हमारी धूल जाएगी, ठिकाना न और कमाने का।।
रूठो ना प्रकृति ऐसे, पटेगा कर्ज हमारा कैसे।
देख कर रुख लग रहा है, हमें भविष्य बिगड़ जाने का।।
बेमौसम चले आए, जरूरत पर खूब बुलाए।
तब तो किया काम तुमने ,नभ की और हमे तकाने का।।
हे ईश्वर, न ऐसी मार मारो, ऊबारों ऊबारो हमें उबारो।
किसान है हम ,भरते है पेट सारे जमाने का।।
राजेश व्यास अनुनय