हे आशुतोष !
हे आशुतोष ! मुझे दीजिए
अपनी भक्ति का वरदान
मन मानस तव चरण में
रम पाए सुखद विहान
मेरे वाणी और कर्मों में भी
रहे सदा शुचिता बरकरार
मानवीय मूल्यों में प्रतिबद्धता
बनी रहे हम सबमें बारंबार
जन मन की संवेदनाओं को
हम समय से सकें पहचान
मेरे मन, वचन और कर्म से न
पड़े कभी जनहित में व्यवधान
मान और अपमान में संतुलित
रहें मन मानस के सभी तार
छोटे और बड़े सभी से सम
रहेें मन और कार्य व्यवहार