!!! हेलमेट की पुकार !!!
मुझको तुम मत समझिए,अपने सिर का भार।
मैं सबकी रक्षा करूं, सुनो मेरी पुकार।।1
भीड़ रोड़ पर बढ़ रही, होते एक्सीडेंट।
वाहन सदा चलाइए, पहनकर हेलमेट।।2
जब भी तुम घर से चलो, रख लो मुझको संग।
रक्षा को तत्पर रहूं, नहीं करूंगा तंग।।3
धूप धूल बरसात से, और बचाऊं चोट।
मुझे जरूरी जान लो, जैसे तन को कोट ।।4
रहता सिर की ढाल बन, आती नहीं खरोंच।
पहनकर हेलमेट को, बदलो अपनी सोच।।5
जीवन यह अनमोल है, क्यों करते खिलवाड़।
हेलमेट को छोड़कर, कैसा हैं यह लाड़।।6
—– जे पी लववंशी, भोपाल मध्यप्रदेश